फिल्म ‘औरों में कहां दम था’ एक ऐसी फिल्म है जो नीरज पांडे की पुरानी फिल्मी दुनिया से पूरी तरह से अलग है। नीरज पांडे, जिन्होंने ‘वेडनेसडे’, ‘स्पेशल 26’, और ‘बेबी’ जैसी कालजयी फिल्मों का निर्देशन किया है, अब अपनी नई फिल्म में एक नये ढंग की प्रेम कहानी पेश कर रहे हैं। आइए, इस लेख में हम इस फिल्म के हर पहलू की गहराई से समीक्षा करें।
फिल्म की कहानी का सारांश
फिल्म ‘औरों में कहां दम था’ एक जटिल प्रेम कहानी है जो दो अलग-अलग कालखंडों में चलती है। कहानी मुंबई के एक महंगे इलाके में रहने वाले एक पति और उसकी कारोबारी पत्नी की है। वसुधा, एक मराठी मुलगी, जो चॉल में रहने वाले कृष्णा से प्रेम करती है, का जीवन कैसे बदलता है, यही इस फिल्म की केंद्रीय थीम है।
वर्तमान काल में वसुधा और उसके पति अभिजीत के जीवन का चित्रण है। वसुधा के प्रेमी कृष्णा को डबल मर्डर के आरोप में जेल की सजा मिली है और अब उसकी रिहाई होने वाली है। वसुधा अपने प्रेमी को अपने पति से मिलाने की कोशिश करती है, जो फिल्म की कहानी में एक प्रमुख मोड़ है।
अतीत काल
अतीत में, हम कृष्णा और वसुधा के प्रेम को देखते हैं, जब कृष्णा और वसुधा का रिश्ता शुरू हुआ था। यह कालखंड एक भावुक प्रेम कहानी को दर्शाता है जिसमें दोनों की जिंदगी के कुछ महत्वपूर्ण पल शामिल हैं।
शांतनु महेश्वरी और सई मांजरेकर
- शांतनु महेश्वरी: कृष्णा के किरदार में शांतनु ने गहराई और संवेदनशीलता के साथ अभिनय किया है। हालांकि, लंबे बालों के साथ उनका चित्रण अजय देवगन की जवानी से मेल नहीं खाता, लेकिन जेल में बाल कटवाने के बाद उनका रूप फिल्म की मांग के अनुसार बेहतर हो जाता है।
- सई मांजरेकर: वसुधा के किरदार में सई ने नूतन की याद ताजा कर दी। उनकी देहभाषा, चेहरे के भाव और अभिनय सहजता दर्शाते हैं कि वह इस किरदार के लिए परफेक्ट हैं।
संगीत और म्यूजिक
फिल्म का संगीत एम एम कीरावणी और मनोज मुंतशिर ने मिलकर तैयार किया है। हालांकि, संगीत का दर्द और भावनात्मक गहराई कुछ हद तक खो गई है। मनोज मुंतशिर की लिखाई और कीरावणी की सीमाएं संगीत की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं
फिल्म की समीक्षा
फिल्म ‘औरों में कहां दम था’ की कहानी एक संवेदनशील प्रेम कहानी को प्रस्तुत करती है, लेकिन इसके संगीत और कथानक में कुछ कमियाँ हैं। नीरज पांडे ने इस फिल्म में एक थ्रिलर तत्व जोड़ने की कोशिश की, लेकिन यह प्रयास फिल्म की गंभीरता को कुछ हद तक प्रभावित करता है।
फिल्म का थ्रिलर मोड़
फिल्म के अंत में जो ट्विस्ट जोड़ा गया है, उसने कहानी को और उलझा दिया है। यह परिवर्तन एक रोमांटिक कहानी को थ्रिलर में बदलने का प्रयास है, लेकिन यह दर्शकों के लिए मिश्रित प्रभाव डालता है।
निष्कर्ष
‘औरों में कहां दम था’ एक प्रभावशाली प्रेम कहानी है, लेकिन इसकी कुछ कमियाँ भी हैं। नीरज पांडे की फिल्म के प्रेमकहानी को एक नई दिशा देने की कोशिश सराहनीय है, लेकिन संगीत और कथानक में सुधार की आवश्यकता है। अगर आप एक गहन प्रेम कहानी देखना चाहते हैं, तो यह फिल्म आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकती है।
इस फिल्म को देखने के बाद, आप इस बात पर विचार कर सकते हैं कि प्रेम कहानियों में थ्रिलर और ट्विस्ट का सही उपयोग कैसे किया जा सकता है। यह फिल्म एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि कैसे एक गहन प्रेम कहानी को एक नई दिशा में ले जाया जा सकता है।
इस प्रकार, ‘औरों में कहां दम था’ की समीक्षा ने हमें नीरज पांडे के निर्देशन के नए पहलुओं को समझने का अवसर प्रदान किया है। यह फिल्म उन दर्शकों के लिए एक आकर्षक विकल्प है जो एक दिलचस्प प्रेम कहानी की खोज में हैं।